
राम कौन हैं? कौन-से राम? वाल्मीकि के राम, तुलसी के राम, दक्षिण भारत के अलवार संतों के राम, या फिर गिरमिटिया मजदूरों की आशा के राम?
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रामकथा कोई एक नहीं, यह एक जीवंत परंपरा है, जो क्षेत्र, भाषा, वर्ग, समाज और इतिहास के साथ बदलती रही है। कहीं वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, कहीं धनुर्धारी वीर, तो कहीं माँ की ममता से सजे लोकगीतों के राम।
रामकथा का भूगोल
राम का वनवास केवल कथा नहीं, वह भारत का सांस्कृतिक भूगोल है — अयोध्या से लेकर रामेश्वरम् तक, प्रयागराज से चित्रकूट, नासिक से किष्किन्धा। जहाँ-जहाँ राम गए, वहाँ एक सांस्कृतिक छाया बनती चली गई।
प्रत्येक नदी, प्रत्येक वन, प्रत्येक आश्रम — सब इस कथा के सहयात्री बने। ऋषियों के आश्रम केवल धार्मिक स्थल नहीं थे, वे समाज के नैतिक निर्माण के केंद्र थे।
राम लोक परंपरा में
राम विवाह गीतों में जामाता हैं, लोक में संबल हैं, मिथिला की सास उन्हें “उबटन लगाकर गोरा करने” को कहती है। वे लोकगीतों के स्नेहिल पात्र हैं जो विवाह, वियोग और विश्वास में जीते हैं।
गिरमिटिया राम
सबसे मार्मिक राम वह हैं जो भारत से दूर समुद्र पार गए — गिरमिटिया मजदूरों के साथ। वे मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी ले जाए गए। उनके पास था सिर्फ रामचरितमानस और एक भरोसा:
“रामजी की ईख के तू चूस ले ले मितवा…”
वे पराजित कौम के राम थे, लेकिन आस्था ने उन्हें फिर से विजेता बना दिया।
राम: विजेता और पराजित दोनों के
राम न केवल विजेताओं के देवता हैं, बल्कि पराजितों की सांत्वना भी। अकबर ने उनके नाम के सिक्के चलवाए, रामानंद ने भक्ति में उन्हें नया अर्थ दिया, गिरमिटिया मजदूरों ने उन्हें अपनी जड़ों की अंतिम स्मृति बनाया।
राम: इतिहास, मिथक और विवाद
रामकथा इतिहास भी है, मिथक भी, आस्था भी और विमर्श भी। जब राम इतिहासकारों की कलम का हिस्सा बनते हैं, तब विवाद का विषय भी बन जाते हैं। पर जब राम सिर्फ आस्था हैं, वे शाश्वत हैं।
इसलिए कहिए — राम को पुनः वनवास न दें। उन्हें संस्कृति में, परंपरा में और भावनाओं में जीवित रहने दें।
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